ASI को ज्ञानवापी में मिले 3 शिलालेख, बताया यहीं था मंदिर,अदालत में बनेंगे सबूत

हैदराबाद. मैसूर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पुरालेख (एपीग्राफी) विंग को वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद की दीवारों पर तीन तेलुगु शिलालेख मिले. एएसआई निदेशक (पुरालेख) के. मुनिरत्नम रेड्डी के नेतृत्व में विशेषज्ञों की एक टीम ने तेलुगु में तीन सहित 34 शिलालेखों को पढ़ा, और काशी विश्वनाथ मंदिर के अस्तित्व पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की.मुनिरत्नम ने बताया कि 17वीं शताब्दी के शिलालेखों में से एक में नारायण भटलू के पुत्र मल्लाना भटलू जैसे व्यक्तियों के नामों का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है. बताया जा रहा है कि ये शिलालेख कोर्ट में इस बात के लिए अहम सबूत बन सकते हैं कि यहां पहले मंदिर ही था.मुनिरत्नम ने समझाते हुए कहा, “यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि नारायण भटलू एक तेलुगु ब्राह्मण हैं जिन्होंने 1585 में काशी विश्वनाथ मंदिर के निर्माण की देखरेख की थी. ऐसा कहा जाता है कि जौनपुर के हुसैन शर्की सुल्तान (1458-1505) ने 15वीं शताब्दी में काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया था. मंदिर का पुनर्निर्माण 1585 में किया गया था. कहा जाता है कि राजा टोडरमल ने दक्षिण भारत के एक विशेषज्ञ नारायण भटलू को मंदिर के निर्माण की निगरानी करने के लिए कहा था. वर्तमान शिलालेख इसी तथ्य का समर्थन करते हैं.”

ज्ञानवापी मस्जिद में मिले शिलालेख क्षतिग्रस्त एवं अधूरे
एएसआई निदेशक ने टीओआई से कहा, “यह शिलालेख ज्ञानवापी मस्जिद की एक दीवार पर खुदा हुआ है और यह तेलुगु भाषा में लिखा गया है. हालांकि यह क्षतिग्रस्त और अधूरा है, लेकिन इसमें मल्लाना भटलू और नारायण भटलू का उल्लेख है.” दूसरा तेलुगु शिलालेख, जो मस्जिद के अंदर पाया गया था, में एक ‘गोवी’ (Govi) का उल्लेख किया गया था. ये चरवाहे होते हैं. तीसरा शिलालेख, जो 15वीं शताब्दी का है, एएसआई विशेषज्ञों को मस्जिद के उत्तरी हिस्से के मुख्य द्वार पर मिला. इसमें 14 लाइनें हैं, जो पूरी तरह से घिसी-पिटी हैं. एक विशेषज्ञ ने कहा, “वे क्षतिग्रस्त हैं. ऐसा लगता है कि वे शाश्वत दीपकों को दफनाने के लिए कोई उपहार रिकार्ड कर रहे हैं, जबकि अन्य विवरण खो गए हैं.”

अयोध्या से भी मिला एक संस्कृत शिलालेख
शिलालेख तेलुगु के अलावा कन्नड़, देवनागरी और तमिल भाषाओं में भी थे. एएसआई की पुरालेख शाखा को इससे पहले अयोध्या से एक संस्कृत शिलालेख मिला था. मुनिरत्नम ने कहा, “यह खंडित शिलालेख एक स्लैब पर उकेरा गया है और यह अयोध्या में स्थल के समतलीकरण के दौरान पाया गया था. यह लगभग 12वीं-13वीं शताब्दी की संस्कृत भाषा तथा नागरी अक्षरों में लिखा गया है. ऐसा लगता है कि यह नैपाला कामा नाम के एक व्यक्ति द्वारा भगवान राम की आराधना को रिकॉर्ड करता है.”

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